वचन में आध्यात्मिक शक्ति

 


एक राजा की रानी बहुत धार्मिक थी। उसने परमेश्वर कबीर जी से गुरू दीक्षा ले रखी थी। वह प्रतिदिन गुरू दर्शन के लिए जाया करती थी। राजा को यह अच्छा नहीं लगता था, परंतु वह अपनी पत्नी को वहाँ जाने से रोक नहीं पा रहा था। 


कारण, एक तो वह उस बड़े शक्तिशाली राजा की लड़की थी, दूसरे वह अपनी पत्नी को प्रसन्न देखना चाहता था। एक दिन राजा ने अपनी पत्नी से कहा कि आप नाराज न हो तो बात कहूँ? रानी ने कहा कहो। राजा ने कहा कि आप अपने गुरू के पास जाती हैं, भक्ति तो गुरू के बिना भी हो सकती है। 


रानी ने कहा कि गुरू जी ने बताया है कि गुरु के बिना भक्ति करना व्यर्थ है। राजा ने कहा कि मैं तेरे साथ कल तेरे गुरू जी से मिलूँगा, उनसे यह बात स्पष्ट करूँगा । राजा ने सन्त जी से प्रश्न किया कि आप जनता को मुर्ख बना रहे हो कि गुरू बिन भक्ति नहीं होती, क्यों नही होती भक्ति सफल? 


नाम मन्त्र जाप करने होते हैं। एक-दूसरे से पूछकर जाप कर लें, पर्याप्त है सन्त ने कहा राजन्! आपकी बात में दम है, मैं आपके राज दरबार में आऊँगा। वहाँ इस बात का उत्तर दूँगा। 


निश्चित दिन को सन्त जी राजा के दरबार में गए। राजा सिंहासन पर विराजमान था, आस-पास सिपाही खड़े थे। संत के बैठने के लिए अलग से कुर्सी रखी थी। सन्त ने जाते ही आस-पास खड़े सिपाहियों से राजा की ओर हाथ करके कहा कि इसे गिरफ्तार कर लो। 


सिपाही टस से मस नहीं हुए । सन्त ने लगातार तीन बार यही वाक्य, आदेश दोहराया कि इसे गिरफ्तार कर लो परन्तु राजा को सिपाहियों ने गिरफ्तार नहीं किया। राजा को सन्त पर क्रोध आया कि यह कमबख्त मेरी पत्नी को इसलिए बहका रहा था कि इसके राज्य को प्राप्त कर लूँ।


 राजा ने एक बार कहा कि सिपाहियो इसे गिरफ्तार कर लो। राजा के हाथ का सन्त की ओर संकेत था । उसी समय सिपाहियों ने सन्त को गिरफ्तार कर लिया । सन्त ने कहा कि हे राजन्! आप घर पर बुलाकर सन्त का अनादर कर रहे  हो, यह अच्छी बात नहीं। 


राजा ने कहा आप यह क्या बकवास कर रहे थे। मुझे गिरफ्तार करने का आदेश दे रहे थे। सन्त ने कहा मैं आपके उस प्रश्न का उत्तर दे रहा था कि गुरू से दीक्षा लेकर भक्ति करना क्यों लाभदायक है? मुझे छुड़ाओ तो मैं आपको उत्तर दे। 


राजा ने सिपाहियों से कहा कि छोड़ दो। सिपाहियों ने सन्त को छोड़ दिया। सन्त ने कहा कि हे राजा जी! मैंने यही वाक्य कहा था, "इसे गिरफ्तार कर लो।" सिपाही टस से मस नहीं हुए। आप जी ने भी यही वाक्य कहा था कि तुरंत सिपाहियों ने मुझे गिरफ्तार कर लिया। 


आपके वचन में राज की शक्ति है। मेरे वचन में आध्यात्मिक शक्ति है। आप उसी नाम-जाप के लिए किसी को भक्ति के लिए कहोगे तो वह मन्त्र कोई कार्य नहीं करेगा मैं वही नाम जाप करने को कहूँगा, वह तुरन्त प्रभाव से क्रियावान होगा इसलिए पूर्ण सन्त से दीक्षा लेने से साधक में तुरंत आध्यात्मिक प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है, उसकी आत्मा में भक्ति का अंकुर निकल आता है । सूक्ष्म वेद में कहा है कि:- 


सतगुरू पशु मानुष करि डारै, सिद्धि देय कर ब्रह्म बिचारें। 


भावार्थ :- सतगुरू पहले मनुष्य को सत्संग सुना-सुनाकर नेक इंसान बनाते हैं, सर्व बुराईयों को छुड़वाते हैं। फिर अपनी भक्ति की सिद्धी अर्थात् शक्ति शिष्य के अन्तःकरण में शब्द से प्रवेश करके ब्रह्म अर्थात् परमात्मा की साधना करने के विचार प्रबल करते हैं जिससे साधक की रूचि भक्ति दिनों-दिन बढ़ती है।


 इसलिए कहा है कि :- 

कबीर, गुरू बिन माला फेरते, गुरू बिन देते दान । 

गुरू बिन दोनों निष्फल हैं, चाहे पूछो बेद पुराण ।। 


योग, यज्ञ तप दान करावै, गुरू विमुख फल कभी नहीं पावै ।। 


भावार्थ :- गुरू बिन नाम जाप की माला फिराते हैं या दान देते हैं, वह व्यर्थ है । यह वेदों तथा पुराणों में भी प्रमाण है। फिर अन्तिम चौपाई का भावार्थ है कि यदि दीक्षा लेकर फिर गुरू को छोड़कर उन्हीं मन्त्रों का जाप करता रहे तथा यज्ञ, हवन, दान भी करता रहे, वह भी व्यर्थ है। उसको कोई लाभ नहीं होगा। 

#JagatGuru_SaintRampalJi

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