ज्ञान को सरलता से समझा दे वह भाषा उस व्यक्ति के लिए वरदान समान है

 ज्ञान चाहे संस्कृत में कह दो या अपनी श्रैत्र भाषा में 

ज्ञान को सरलता से समझा दे वह भाषा उस व्यक्ति के लिए वरदान समान है संत गरीबदास जी ने तत्वज्ञान जो वेदो गीता और सभी शास्त्रो से बहुत आगे का है उसे आम और सरल भाषा में बताया और समझाया है कि अनपढ को भी सुना दो तो वो भी समझ जाये ....



ब्रह्मा विष्णु महेश्वर माया, और धर्मराय कहिये । 


इन पाँचों मिल जीव अटकाये, जुगन-जुगन हम आन छुटाये। 

बन्दी छोड़ हमारा नाम, अजर अमर है अस्थिर ठामं ।।


 पीर पैगम्बर कुतुब औलिया, सुर नर मुनिजन ज्ञानी । 

येता को तो राह न पाया, जम के बंधे प्राणी ।। 


धर्मराय की धूमा-धामी, जम पर जंग चलाऊँ। 

जोरा को तो जान न दूगां, बांध अदल घर ल्याऊँ ।। 


काल अकाल दोहूँ को मोसूं, महाकाल सिर मूंडू।

 मैं तो तख्त हजूरी हुकमी, चोर खोज कूं ढूंढू।।


मूला माया मग में बैठी, हंसा चुन-चुन खाई ।

 ज्योति स्वरूपी भया निरंजन, मैं ही कर्ता भाई।। 


संहस अठासी दीप मुनीश्वर, बंधे मुला डोरी । 

ऐत्यां में जम का तलबाना, चलिए पुरुष कीशोरी ।। 


मूला का तो माथा दागू, सतकी मोहर करुंगा । 

पुरुष दीप कें हंस चलाऊँ, दरा न रोकन दूंगा।। 


हम तो बन्दी छोड़ कहावां, धर्मराय है चकवै ।

सतलोक की सकल सुनावा, वाणी हमरी अखवै।। 


नौ लख पटट्न ऊपर खेलूं, साहदरे में रोकूं । 

द्वादस कोटि कटक सब काटू, हंस पठाऊँ मोखू ।।


चौदह भुवन गमन है मेरा, जल थल में सरबंगी 

 खालिक खलक खलक में खालिक, अविगत अचल अभंग ।।


अगर अलील चक्र है मेरा, जित से हम चल आए । 

पाँचों पर प्रवाना मेरा, बंधि छुटावन धाये ।।


 जहाँ ओंकार निरंजन नाहीं, ब्रह्मा विष्णु वेद नहीं जाहीं । जहाँ करता नहीं जान भगवाना, काया माया पिण्ड न प्राणा।। 


https://www.jagatgururampalji.org/adhyatmik_gyan_ganga.pdf


#JagatGuru_SaintRampalJi

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