गुरु बनाना क्यूं अनिवार्य है

कबीर, 
गुरू बिन माला फेरते, गुरु बिन देते दान । 
गुरू बिन दोंनो निष्फल है, पूछो वेद पुराण ।। 

कबीर, राम कृष्ण से कौन बड़ा, उन्हों भी गुरू कीन्ह । तीन लोक के वे धनी, गुरू आगे आधीन।। 

कबीर, राम कृष्ण बड़े तिन्हूं पुर राजा। 
तिन गुरू बन्द कीन्ह निज काजा ।। 

भावार्थ :- गुरू धारण किए बिना यदि नाम जाप की माला फिराते हैं और दान देते हैं, वे दोनों व्यर्थ हैं । यदि आप जी को संदेह हो तो अपने वेदों तथा पुराणों में प्रमाण देखें। श्रीमद् भगवत गीता चारों वेदों का सारांश है। 

गीता अध्याय 2 श्लोक 7 में अर्जुन ने कहा कि हे श्री कृष्ण! मैं आपका शिष्य हूँ, आपकी शरण में हूँ । गीता अध्याय 4 श्लोक 3 में श्री कृष्ण जी में प्रवेश करके काल ब्रह्म ने अर्जुन से कहा कि तू मेरा भक्त है। 

पुराणों में प्रमाण है कि श्री रामचन्द्र जी ने ऋषि वशिष्ठ जी से नाम दीक्षा ली थी और अपने घर व राज-काज में गुरू वशिष्ठ जी की आज्ञा लेकर कार्य करते थे। 

श्री कृष्ण जी ने ऋषि संदीपनि जी से अक्षर ज्ञान प्राप्त कियातथा श्री कृष्ण जी के आध्यात्मिक गुरू श्री दुर्वासा ऋषि जी थे। 

कबीर परमेश्वर जी हमें समझाना चाहते हैं कि आप जी श्री राम तथा श्री कृष्ण जी से तो किसी को बड़ा अर्थात् समर्थ नहीं मानते हो । वे तीन लोक के मालिक थे, उन्होंने भी गुरू बनाकर अपनी भक्ति की, जीवन सफल किया। इससे सहज में ज्ञान हो जाना चाहिए कि अन्य व्यक्ति यदि गुरू के बिना भक्ति करता है तो कितना सही है? 
अर्थात् व्यर्थ है।
कृपया परिपूर्ण आध्यात्मिक ज्ञान के लिए सुनिए
जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के सत्संग youtube पर भी उपलब्ध हैं ।

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