आदरणीय नानक साहेब जी की वाणी में सृष्टि रचना का संकेत

 "आदरणीय नानक साहेब जी की वाणी में सृष्टि रचना का संकेत" 



श्री नानक साहेब जी की अमृतवाणी, महला 1, राग बिलावलु, अंश 1 (गु. ग्र. पृ. 839) 


आपे सचु कीआ कर जोड़ि। अंडज फोड़ि जोडि विछोड़।। 

धरती आकाश कीए बैसण कउ थाउ । 

राति दिनंतु कीए भउ–भाउ ।।

जिन कीए करि वेखणहारा ।


त्रितीआ ब्रह्मा-बिसनु-महेसा। देवी देव उपाए वेसा ।।

पउण पाणी अगनी बिसराउ। ताही निरंजन साचो नाउ ।। तिसु महि मनुआ रहिआ लिव लाई। प्रणवति नानकु कालु न खाई । ।


 उपरोक्त अमृतवाणी का भावार्थ है कि सच्चे परमात्मा (सतपुरुष) ने स्वयं ही अपने हाथों से सर्व सृष्टि की रचना की है। उसी ने अण्डा बनाया फिर फोड़ा तथा उसमें से ज्योति निरंजन निकला। 

उसी पूर्ण परमात्मा ने सर्व प्राणियों के रहने के लिए धरती, आकाश, पवन, पानी आदि पाँच तत्व रचे । अपने द्वारा रची सृष्टि का स्वयं ही साक्षी है। दूसरा कोई सही जानकारी नहीं दे सकता। 

फिर अण्डे के फूटने से निकले निरंजन के बाद तीनों श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी की उत्पत्ति हुई तथा अन्य देवी देवता उत्पन्न हुए तथा अनगिनत जीवों की उत्पत्ति हुई। 

उसके बाद अन्य देवों के जीवन चरित्र तथा अन्य ऋषियों के अनुभव के छ: शास्त्र तथा अठारह पुराण बन गए। पूर्ण परमात्मा के सच्चे नाम (सत्यनाम) की साधना अनन्य मन से करने से तथा गुरु मर्यादा में रहने वाले (प्रणवति) को श्री नानक जी कह रहे हैं कि काल नहीं खा सकता । 

https://www.jagatgururampalji.org/adhyatmik_gyan_ganga.pdf


#JagatGuru_SaintRampalJi

Comments