"कर्म काण्ड के विषय में सत्य कथा"

मेरे (संत रामपाल दास के) पूज्य गुरूदेव स्वामी राम देवानन्द जी महाराज को सोलह वर्ष की आयु में किसी महात्मा के सत्संग सुनने से वैराग हो गया था एक दिन वे खेतों में गये हुए थे। पास में ही वन था। वे वन में जाकर किसी मृत जानवर की हड्डियों के पास अपने कपड़े फाड़कर फैंक जाते हैं और स्वयं महात्मा जी के साथ चले जाते हैं। जब उनकी खोज हुई तो उनके घर वालों ने देखा कि वन में हड्डियों के पास फटे हुए कपड़े पड़े हैं तो उन्होंने सोचा कि किसी जंगली जानवर ने उन्हें खा लिया है। उन कपड़ों तथा हड्डियों को उठा कर घर पर ले आते हैं और अंतिम संस्कार कर देते हैं। उसके बाद तेरहवीं तथा छ:माही करते हैं और फिर श्राद्ध शुरू हो जाते हैं । जब मेरे पूज्य गुरूदेव बहुत वृद्ध हो चुके थे तो वे एक बार घर पर गये। तब उन घर वालों को यह पता चला कि ये जीवित हैं और घर छोड़कर चले गये थे। उन्होंने बताया कि जब ये घर छोड़कर चले गये थे तो इनकी खोज हुई। वन में इनके कपड़े मिले। उनके पास कुछ हड्डियाँ पड़ी थी। तो हमने सोचा कि किसी जंगली जानवर ने इनको खा लिया है और उन कपड़ों तथा हड्डियों को घर पर लाकर अंतिम संस्कार कर दिया। फिर मैंने (संत रामपाल दास ने) मेरे पूज्य गुरुदेव के छोटे भाई की पत्नी से पूछा कि जब हमारे पूज्य गुरूदेव घर छोड़कर चले गये थे तो तुमने पीछे से क्या किया? उसने बताया कि जब मैं ब्याही आई थी तो उस समय मुझे इनके श्राद्ध निकलते मिले थे। मैं अपने हाथों से इनके लगभग 70 श्राद्ध निकाल चुकी हूँ। उसने बताया कि जब घर में कोई नुकसान हो जाता था जैसे कि भैंस का दूध न देना, थन में खराबी आ जाना, कोई और नुकसान हो जाना आदि तो हम स्यानों के पास बूझा पड़वाने के लिए जाते थे तो वे कहते थे कि तुम्हारे घर में कोई निःसन्तान ( अनमैरिड) मरा हुआ है। तुम्हारे को वह दुःखी कर रहा है। फिर हम उसके कपड़े आदि देते हैं । तब मैंने कहा कि ये तो दुनिया का उद्धार कर रहे हैं। ये किसको दुःख दे रहे थे। ये तो अब सुख दाता हैं। फिर मैंने (सन्त रामपाल जी महाराज ने) उस वृद्धा से कहा कि अब तो ये आपके सामने हैं, अब तो ये व्यर्थ की साधना जैसे श्राद्ध निकालने बंद कर दो। तब उसने कहा कि यह तो पुरानी रिवाज है, यह कैसे छोड़ दूं? अर्थात् हम अपनी पुरानी रिवाजों में इतने लीन हो चुके हैं कि प्रत्यक्ष प्रमाण होने पर कि वह गलत कर रहे हैं छोड़ नहीं सकते। इससे प्रमाणित होता है कि श्राद्ध निकालना, पितर पूजा करना आदि सब व्यर्थ हैं...

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