आदरणीय गरीबदास साहेब जी की अमृतवाणी में सृष्टि रचना का प्रमाण

 "आदरणीय गरीबदास साहेब जी की अमृतवाणी में सृष्टि रचना का प्रमाण" 



आदि रमैंणी अदली सारा । जा दिन होते धुंधुंकारा । |1 || सतपुरुष कीन्हा प्रकाशा। हम होते तखत कबीर खवासा ।।2 ।।

 मन मोहिनी सिरजी माया। सतपुरुष एक ख्याल बनाया ।।3 || 

धर्मराय सिरजे दरबानी। चौसठ जुगतप सेवा ठांनी ।।4 || पुरुष पृथिवी जाके दीन्ही । राज करो देवा आधीनी। I5।। ब्रह्मण्ड इकीस राज तुम्ह दीन्हा। मन की इच्छा सब जुग लीन्हा।।6 ।। 

माया मूल रूप एक छाजा। मोहि लिये जिनहूँ धर्मराजा।।7 || 

धर्म का मन चंचल चित धाऱ्या। मन माया का रूप बिचारा ।।8।। 

चंचल चेरी चपल चिरागा। या के परसे सरबस जागा। 19 । । 

धर्मराय कीया मन का भागी । विषय वासना संग से जागी ||10 ||

आदि पुरुष अदली अनरागी। धर्मराय दिया दिल सें त्यागी ।।1||

 पुरुष लोक सें दीया ढहाही। अगम दीप चलि आये भाई । I12।। 

सहज दास जिस दीप रहता । कारण कौंन कौंन कुल पंथा ।।13 ।। 

धर्मराय बोले दरबानी। सुनो सहज दास ब्रह्मज्ञानी ।।14 |।। 

चौसठ जुग हम सेवा कीन्ही। पुरुष पृथिवी हम कें दीन्ही । I15|| 

चंचल रूप भया मन बौरा। मनमोहिनी ठगिया भौंरा I16 || 

सतपुरुष के ना मन भाये । पुरुष लोक से हम चलि आये ।।17||। 

अगर दीप सुनत बड़भागी। सहज दास मेटो मन पागी।।18।। 

बोले सहजदास दिल दानी। हम तो चाकर सत सहदानी।।19 || 

सतपुरुष सें अरज गुजारूं। जब तुम्हारा बिवाण उतारूं | 120 |।

 सहज दास को कीया पीयाना। सत्यलोक लीया प्रवाना ||21 || 

सतपुरुष साहिब सरबंगी। अविगत अदली अचल अभंग । ।22 |। 

धर्मराय तुम्हरा दरबानी। अगर दीप चलि गये प्रानी।।23 ।। 

कौन हुकम करी अरज अवाजा। कहां पठावौ उस धर्मराजा ।।24 ।।

 भई अवाज अदली एक साचा । विषय लोक जा तीन्यूं बाचा।125 |। 

सहज विमान चले अधिकार । छिन में अगर दीप चलि आई । |26 |। 

हमतो अरज करी अनरागी। तुम्ह विषय लोक जावो बड़भागी।I27 ||

 धर्मराय के चले विमान । मानसरोवर आये प्राना | 128 | मानसरोवर रहन न पाये। दरै कबीरा थांना लाये ।।29 ।। बंकनाल की विषमी बाटी । तहां कबीरा रोकी घाटी। ।30 ।। इन पाँचों मिलि जगत बंधाना। लख चौरासी जीव संताना ।।31 ।। 

ब्रह्मा विष्णु महेश्वर माया । धर्मराय का राज पठाया ।I32 || 

यौह खोखा पुर झूठी बाजी। भिसति बैकुण्ठ दगासी साजी । I33 ।। 

कृतिम जीव भुलांनें भाई । निज घर की तो खबरि न पाई ।।34 | | 

सवा लाख उपजें नित हंसा। एक लाख विनशें नित अंसा।।35 |।

 उपति खपति प्रलय फेरी। हर्ष शोक जौंरा जम जेरी।।36 |। 

पाँचों तत्त्व हैं प्रलय माँही। सत्त्वगुण रजगुण तमगुण झाई। ।37 ।। 

आठों अंग मिली है माया। पिण्ड ब्रह्मण्ड सकल भरमाया। I38 ।। 

या में सुरति शब्द की डोरी। पिण्ड ब्रह्मण्ड लगी है खोरी।।39 ।। 

श्वासा पारस मन गह राखो। खोल्हि कपाट अमीरस चाखो ।।40 ।। 

सुनाऊं हंस शब्द सुन दासा । अगम दीप है अग है बासा ।।41 || 

भवसागर जम दण्ड जमाना। धर्मराय का है तलबांना ।I42।।

पाँचों ऊपर पद की नगरी । बाट बिहंगम बंकी डगरी।।43 ।। 

हमरा धर्मराय सों दावा । भवसागर में जीव भरमावा ।।44 |। 

हम तो कहैं अगम की बानी। जहाँ अविगत अदली आप बिनानी। I45 |। 

बंदी छोड़ हमारा नाम । अजर अमर है अस्थीर ठामं ।।46 |। 

जुगन जुगन हम कहते आये। जम जौंरा सें हंस छुटाये।।47 || 

जो कोई मानें शब्द हमारा । भवसागर नहीं भरमें धारा ।।48 ।। 

या में सुरति शब्द का लेखा । तन अंदर मन कहो कीन्ही देखा । ।49 । । 

दास गरीब अगम की बानी। खोजा हंसा शब्द सहदानी । 150 || 


उपरोक्त अमृतवाणी का भावार्थ है कि आदरणीय गरीबदास साहेब जी कह हैं कि यहाँ पहले केवल अंधकार था तथा पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी लोक में तख्त (सिंहासन) पर विराजमान थे। हम वहाँ चाकर थे। परमात्मा ने ते निरंजन को उत्पन्न किया । फिर उसके तप के प्रतिफल में इक्कीस ब्रह्मण्ड | किए। फिर माया ( प्रकृति) की उत्पत्ति की। युवा दुर्गा के रूप पर मोहित  ज्योति निरंजन ( ब्रह्म) ने दुर्गा (प्रकृति) से बलात्कार करने की चेष्टा की । को उसकी सजा मिली। उसे सत्यलोक से निकाल दिया तथा शाप लगा कि लाख मानव शरीर धारी प्राणियों का प्रतिदिन आहार करेगा, सवा लाख उत्पन्न ।। यहाँ सर्व प्राणी जन्म-मृत्यु का कष्ट उठा रहे हैं। यदि कोई पूर्ण परमात्मा वास्तविक शब्द (सच्चानाम जाप मंत्र) हमारे से प्राप्त करेगा, उसको काल की से छुड़वा देंगे। हमारा बन्दी छोड़ नाम है। आदरणीय गरीबदास जी अपने गुरु कबीर परमात्मा के आधार पर कह रहे हैं कि सच्चे मंत्र अर्थात् सत्यनाम व सारशब्द की प्राप्ति कर लो , पूर्ण मोक्ष हो जायेगा नहीं तो नकली नाम दाता संतों हन्तों की मीठी-मीठी बातों में फंस कर शास्त्र विधि रहित साधना करके काल में रह जाओगे। फिर कष्ट पर कष्ट उठाओगे।


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