कलियुग में नाम से भक्ति होती है ।

कबीर, 
कलयुग में जीवन थोड़ा है, कीजे बेग सम्भार। 
योग साधना बने नहीं, केवल नाम आधार ।। 

कबीर, 
नाम लिय तिन सब लिया सकल बेद का भेद ।
 बिन नाम नरकै पड़ा, पढ़कर चारों वेद । । 

कलयुग केवल नाम आधारा, सुमर-सुमर नर उतरे पारा । (रामायण) 

भावार्थ :- पूर्व के युगों में मानव की आयु लम्बी होती थी। ऋषि व साधक हठयोग करके हजारों वर्षों तक तप साधना करते रहते थे। 
अब कलयुग में मनुष्य की औसतन आयु लगभग 75-80 वर्ष रह गई है। इतने कम समय में पूर्व वाली हठयोग साधना नहीं कर सकोगे। इसलिए अतिशीघ्र गुरू जी से दीक्षा लेकर अपने जीवन का शेष समय संभाल लें ।
 भक्ति करके इसका सदुपयोग कर लो । 
यदि कोईव्यक्ति चारों वेदों को पढ़ता रहा और नाम जाप किया नहीं तो वह भक्ति की शक्ति से रहित होकर नरक में गिरेगा और जिसने विधिवत दीक्षा लेकर नाम का जाप किया तो समझ लो 
उसने सर्व वेदों का रहस्य जान लिया। उदाहरण के लिए जैसे औषधि की पुस्तक को पढ़ता रहा, उपचार कराया नहीं तो वह जीवन से हाथ धो बैठेगा।
 और जिसने डॉक्टर से रोग के लक्षण सुने और उपचार कराया, औषधि खाई तो उसने अपने जीवन की रक्षा कर ली । मानो उसने तो औषधि की पुस्तक का रहस्य जान लिया। उसको औषधि की पुस्तक पढ़ने की कोई आवश्यकता नहीं।
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