मैं नीचे कैसे उतरूंगा

 


एक आदमी कहीं जा रहा था । रास्ते में उसे यह खजूर का पेड़ दिखा जिस पर पके हुये खजूर लगे हुए थे पके खजूर देखकर उसके मन में खजूर खाने का खयाल आया उसने काफी पत्थर फेंके पर खजूर नहीं गिरे । 


तब वह खजूर पर चढ़ गया जब वह खजूर पर चढ़ गया तो उसने कुछ खजूर खाए और जैसे ही नीचे देखा तो उसे एकदम से डर लगने लगा कि अब मैं नीचे कैसे उतरूंगा ।


 तो उसने मन ही मन भगवान को याद किया और कहा हे भगवान अगर मैं नीचे सही सलामत उतर गया तो आपको ₹100 का प्रसाद चढ़ाऊंगा 


पर वह धीरे-धीरे भगवान को याद रख कर नीचे उतरने लगा आधा पेड़ उतरते ही उसके मन में ख्याल आया कि ₹100 तो ज्यादा है , ₹50 का प्रसाद भगवान को चढ़ा दूंगा फिर जैसे-जैसे थोड़ा और नीचे आया 


तो उसने सोचा ₹50 भी ज्यादा ही हैं , 

₹25 का प्रसाद चढ़ा दूंगा जैसे-जैसे वह चार पांच फीट पर रहा तो उसने सोचा ₹25 भी ज्यादा है 

₹10 का चढ़ा दूंगा फिर जैसे ही थोड़ा सा बाकी रहा वो एकदम से नीचे कूदा और बोला भगवान से आखिर गिराई दिया , ना । 

अब चढ़ाऊंगा , मैं तेरे प्रसाद ...


ऐसी वृति हम इंसानों की है दुख: में भगवान भगवान करते है ज्यों ही सुख जैसा कुछ हो जाता है तो भगवान को भूल जाते हैं । 

कबीर , 

दुख में सिमरन सब करे , सुख में करे ना कोय ।

जो सुख में सिमरन कर ले , दुख काहे को होय ।।

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