धन सम्पदा भक्त के चरणों में पड़ी रहती है

कबीर, माया दासी संत की, उभय दे आशीष । 
विलसी और लातों छड़ी, सुमर-सुमर जगदीश ।।

 भावार्थ :- सर्व सुख-सुविधाएं धन से होती हैं । वह धन शास्त्रविधि अनुसार भक्ति करने वाले संत-भक्त की भक्ति का By Product होता है। 
जैसे जिसने गेहूँ की फसल बीजी तो उसका उद्देश्य गेहूँ का अन्न प्राप्त करना है। परंतु भुष अर्थात् चारा भी अवश्य प्राप्त होता है। 
चारा, तूड़ा गेहूँ के अन्न का By Product है। इसी प्रकार सत्य साधना करने वाले को अपने आप धन माया मिलती है। साधक उसको भोगता है, वह चरणों में पड़ी रहती है अर्थात् धन का अभाव नहीं रहता अपितु आवश्यकता से अधिक प्राप्त रहती है। परमेश्वर की भक्ति करके माया का भी आनन्द भक्त, संत प्राप्त करते हैं तथा पूर्ण मोक्ष भी प्राप्त करते हैं।

www.jagatgururampalji.org

Comments