सती अनुसूईया की महिमा तथा दत्तात्रेय की उत्पति




सती अनुसूईया श्री अत्री ऋषि की पत्नी थी। जो अपने पतिव्रता धर्म के कारण सुप्रसिद्ध थी। एक दिन देव ऋषि नारद जी भगवान विष्णु जी से मिलने विष्णु लोक में गए। श्री विष्णु जी घर पर उपस्थित नहीं थे। श्री लक्ष्मी जी घर पर अकेली थी। बात-बातों में नारद जी ने अत्री ऋषि की पत्नी अनुसूईया जी की सुन्दरता तथा उसके पतिव्रता धर्म की अति महिमा की। 

जिस कारण से लक्ष्मी जी को अनुसूईया के प्रति ईर्षा हो गई तथा उसके पतिव्रता धर्म को खण्ड करवाने की युक्ति सोचने लगी। नारद जी वहाँ से चल कर श्री शिव शंकर जी के लोक में उनसे मिलने के उद्देश्य से गए। 


वहाँ पर भी देवी पार्वती जी ही घर पर थी, श्री शिव जी घर पर नहीं थे। श्री नारद जी ने बात-बातों में सती अनुसूईया जी के पतिव्रत धर्म व सुन्दरता की अति महिमा सुनाई तथा श्री ब्रह्मा लोक को प्रस्थान किया। देवी पार्वती को अनसुईया के प्रति ईर्षा हो गई कि ऐसी पतिव्रता कौन हो गई जिसकी चर्चा सर्व जगत् में हो रही है। पार्वती जी भी अनुसूईया के पतिव्रत धर्म को खण्ड करवाने का उपाय सोचने लगी।


 नारद जी श्री ब्रह्मा लोक में पहुँचे तो श्री ब्रह्मा जी की पत्नी श्री सावित्री जी ही घर पर उपस्थित थी, श्री ब्रह्मा जी नहीं थे। ऋषि नारद जी ने वहाँ पर भी सती अनुसूईया के पतिव्रत धर्म तथा सुन्दरता की अति महिमा कही तथा वहाँ से चल पड़े। देवी सावित्री जी भी अनुसूईया से ईर्षा करने लगी तथा अनुसूईया के पतिव्रत धर्म को खण्ड करवाने का उपाय सोचने लगी। 


तीनों (सावित्री, लक्ष्मी तथा पार्वती) इक्ट्ठी हुई तथा अनुसूईया के पतिव्रत धर्म को खण्ड कराने की युक्ति निकाली कि अपने-2 पतियों (ब्रह्मा, विष्णु, शिव) को भेज कर अनुसूईया का पतिव्रत धर्म खण्ड कराना है। उसे अपने पतिव्रत धर्म का अधिक घमण्ड है। तीनों देवता (ब्रह्मा, विष्णु, शिव) अपने-2 निवास स्थान पर पहुँचे। तीनों देवियों ने अनुसूईया का पतिव्रत धर्म खण्ड करने की जिद्द की। 


तीनों भगवानों ने बहुत समझाया कि यह पाप हमसे मत करवाओ। परंतु तीनों देवी (सावित्री, लक्ष्मी तथा पार्वती) टस से मस नहीं हुई। तीनों भगवानों ने साधु वेश धारण किया तथा अत्रि ऋषि के आश्रम पर पहुंचे। उस समय अनुसूईया जी आश्रम पर अकेली थी। साधुवेश में तीन अत्तिथियों को द्वार पर देख कर अनुसूईया ने भोजन ग्रहण करने का आग्रह किया तीनों साधुओं ने कहा कि हम आपका भोजन अवश्य ग्रहण करेंगे। 


परंतु एक शर्त पर कि आप निःवस्त्र होकर भोजन कराओगी। अनुसूईया ने साधुओं के शाप के भय से तथा अतिथि सेवा से वंचित रहने के पाप के भय से परमात्मा से प्रार्थना की कि हे परमेश्वर ! इन तीनों को छ:-छ: महीने के बच्चे की आयु के शिशु बनाओ। जिससे मेरा पतिव्रत धर्म भी खण्ड न हो तथा साधुओं को आहार भी प्राप्त हो व अतिथि सेवा न करने का पाप भी न लगे। 


परमेश्वर की कृपा से तीनों देवता छ:-छ: महीने के बच्चे बन गए तथा अनुसूईया ने तीनों को निःवस्त्र होकर दूध पिलाया तथा पालने में लेटा दिया। तीनों देवता वापिस न लौटने के कारण तीनों देवी (सावित्री, लक्ष्मी तथा पार्वती) अत्रि ऋषि के आश्रम पर गई। अनुसूईया से अपने पतियों के विषय में पूछा कि क्या आपके पास हमारे पति (ब्रह्मा, विष्णु, शिव) आए थे। अनुसूईया ने कहा कि ये तीनों पालने में झूल रहे हैं। 


ये मुझ से निःवस्त्र होकर भोजन ग्रहण करने की इच्छा रखते थे। इसलिए इनका शिशु रूप होना आवश्यक था। तीनों देवियों ने तीनों भगवानों को पालने में शिशु रूप में लेटे देखा तथा पहचानने में असमर्थ रही। तब सती अनुसूईया के पतिव्रत धर्म की महिमा कही कि आप वास्तव में पतिव्रता पत्नी हो। हमसे ईर्षावश यह गलती हुई है। ये तीनों तो मना कर रहे थे।


 परंतु हमारे हठ के समक्ष इन्होंने यह घृणित कार्य करने की चेष्टा की थी। कृप्या आप इन्हें पुनः उसी अवस्था में कीजिए। आपकी हम आभारी होंगी। अत्री ऋषि की पत्नी अनुसूईया ने परमेश्वर से अर्ज की जिस कारण से तीनों बालक उसी (ब्रह्मा, विष्णु, शिव) अवस्था में हो गए तथा अनुसूईया की अति प्रसंशा की। अत्री ऋषि व अनुसूईया से तीनों भगवानों ने वर मांगने को कहा। तब अनुसूईया ने कहा कि आप तीनों हमारे घर बालक बन कर पुत्र रूप में आएँ। हम निःसंतान हैं।


 तीनों भगवानों ने तथास्तु कहा तथा अपनी-2 पत्नियों के साथ अपने-2 स्थान को प्रस्थान कर गए। कालान्तर में दतात्रेय रूप में भगवान विष्णु का जन्म अनुसूईया के गर्भ से हुआ तथा ब्रह्मा जी का चन्द्रमा तथा शिव जी का दुर्वासा रूप में अत्रि की पत्नी अनुसूईया के गर्भ से जन्म हुआ। इस प्रकार श्री दतात्रेय जी का अर्विभाव अनुसूईया के गर्भ से हुआ।

 दत्तात्रेय जी ने चौबीस गुरूओं से शिक्षा पाई। भगवान दत्त (दत्तात्रेय) जी के नाम पर "दत्त" सम्प्रदाय दक्षिण भारत में विशेष प्रसिद्ध है। गिगनार क्षेत्र में श्री दत्तात्रेय जी का सिद्ध पीठ है। दक्षिण भारत में इनके कई मन्दिर हैं ....... दत्तात्रेय ने 24 गुरू क्यों बनाये लोग कहते है गुरू बदलना तो पाप माना जाता है । जब एक डाक्टर से ईलाज नहीं हो तो रोगी डाक्टर बदलता है उसी तरह पुर्ण संत ना मिले जो परिपूर्ण आध्यात्मिक ज्ञान और विधी देने  वाला ना मिले खोजते रहना चाहिए गीता 4/34

पर दत्तात्रेय ने 25वें गुरू भी बनाए लिंक सत्संग सुनिए ...


https://youtu.be/xVFejHe-qxc (सत्संग लिंक)


https://www.jagatgururampalji.org/adhyatmik_gyan_ganga.pdf ( से साभार )

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