संसार वृक्ष

परम अक्षर ब्रह्म संसार रूपी वृक्ष की मूल (जड़) रूप परमेश्वर है।
 यह वह परमात्मा है जिनके  विषय में सन्त गरीब दास जी ने कहा है :- 

"भजन करो उस रब का, जो दाता है कुल सब का" 

यह असँख्यों ब्रह्माण्डों का मालिक है। यह क्षर पुरूष तथा अक्षर पुरूष का भी मालिक तथा उत्पत्तिकर्ता है। 

2. अक्षर पुरूष :- यह संसार रूपी वृक्ष का तना जानें। यह 7 शंख ब्रह्माण्डों का मालिक है, नाशवान है। 

3. क्षर पुरूष :- यह गीता ज्ञान दाता है, इसको "क्षर ब्रह्म" भी कहते हैं । यह केवल 21 ब्रह्माण्डों का मालिक है, नाशवान है । 

4. तीनों देवता ( रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु तथा तमगुण शिव) तीन शाखाएं :- ये एक ब्रह्माण्ड में बने तीन लोकों (पृथ्वी लोक, पाताल लोक तथा स्वर्ग लोक) में

 एक-एक विभाग के मन्त्री हैं, मालिक हैं। 
जैसे = रजगुण विभाग के श्री ब्रह्मा जी मालिक हैं, जिसके प्रभाव से सर्व प्राणी सन्तानोत्पत्ति करते हैं।

 सतगुण विभाग के श्री विष्णु जी मालिक हैं, जिससे एक-दूसरे में ममता बनी रहती है, कर्मानुसार सर्व का किया फल देते हैं। 

तमोगुण विभाग के श्री शंकर जी मालिक हैं, जिसके कारण सर्व का अन्त होता है और पात रूप में संसार के प्राणी जानो। 

यह है संसार रूपी वृक्ष के सर्वांगों की भिन्न-भिन्न जानकारी। यह ज्ञान स्वयं परमेश्वर कबीर जी ने अपने मुख कमल से बोला था । 

वह कबीर वाणी, कबीर बीजक, कबीर शब्दावली तथा कबीर सागर में श्री धनी धर्मदास (बाँधवगढ़ वाले) द्वारा लिखा गया था। उस परमेश्वर ने तो बताया ही था या वर्तमान में इस दास (संत रामपाल दास) ने समझा है।
 यह कृपा परमेश्वर कबीर जी की ही है कि सम्पूर्ण आध्यात्म ज्ञान मुझे (संत रामपाल जी महाराज)प्राप्त है।

www.jagatgururampalji.org 

https://youtu.be/PXLo-rJpguk (सत्संग लिंक)

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